Tuesday, April 17, 2012

रात की मदहोशी में
नींद की बेहोशी में
जब चांद सिर पर होता है
जब सारा जग सोता है
आकाश मिलता धरती से लुकते-छिपाते
चांदनी देखती है बादलों से आते-जाते
कोई रोकने, कोई टोकने वाला तो नहीं
रात में दिन का कहीं बवाला तो नहीं
न पड़े खलल इस अदभुत मिलन में
जब गुम होता गगन अपने समन में
कुछ न कहो, बस गुम हो जाने दो इन्हें
एक-दूसरे की आग़ोश में खो जाने दो इन्हें
कल फिर वही सवेरा, फिर वही विदाई होगी
दोंनों के बीच सूरज की रौशनी छाई होगी
फिर अपना-अपना काम करेंगे सब
दौंड़ेंगे-भागेंगे, पानी से बहेंगे सब
फिर शाम लौटते काम की थकान होगी
घर लौटने की लबों पर मुस्कान होगी
तब घिर आएगी रात मिलन की
आसमां देखेगा आखों में हमदम की
फिर छाएगी मदहोशी रात में
नींद में, बेहोशी में, जज़्बात में

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