Tuesday, April 17, 2012

ख़्वाबों, ख़्यालातों, बातों का हंगामा
दिन के उजाले में बीती रातों का हंगामा

मचलती आंखों के नाज़ुक एहसास के
हर ओठ में छिपे जज़बातों का हंगामा

चौक-चौबारे से ग़ुज़रते हर शक़्स की
हर दिन होती मुलाक़ातों का हंगामा

शोर-ओ-गुल में गुज़री ज़िंदगी की
रातों में गुज़रते सन्नाटे का हंगामा

इस गफ़लत में भूल बैठा हुं 'अमन'
है हंगामें में ज़िंदगी या ज़िंदगी में है हंगामा

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