Tuesday, April 17, 2012

ख़्वाबों, ख़्यालातों, बातों का हंगामा
दिन के उजाले में बीती रातों का हंगामा

मचलती आंखों के नाज़ुक एहसास के
हर ओठ में छिपे जज़बातों का हंगामा

चौक-चौबारे से ग़ुज़रते हर शक़्स की
हर दिन होती मुलाक़ातों का हंगामा

शोर-ओ-गुल में गुज़री ज़िंदगी की
रातों में गुज़रते सन्नाटे का हंगामा

इस गफ़लत में भूल बैठा हुं 'अमन'
है हंगामें में ज़िंदगी या ज़िंदगी में है हंगामा
रात की मदहोशी में
नींद की बेहोशी में
जब चांद सिर पर होता है
जब सारा जग सोता है
आकाश मिलता धरती से लुकते-छिपाते
चांदनी देखती है बादलों से आते-जाते
कोई रोकने, कोई टोकने वाला तो नहीं
रात में दिन का कहीं बवाला तो नहीं
न पड़े खलल इस अदभुत मिलन में
जब गुम होता गगन अपने समन में
कुछ न कहो, बस गुम हो जाने दो इन्हें
एक-दूसरे की आग़ोश में खो जाने दो इन्हें
कल फिर वही सवेरा, फिर वही विदाई होगी
दोंनों के बीच सूरज की रौशनी छाई होगी
फिर अपना-अपना काम करेंगे सब
दौंड़ेंगे-भागेंगे, पानी से बहेंगे सब
फिर शाम लौटते काम की थकान होगी
घर लौटने की लबों पर मुस्कान होगी
तब घिर आएगी रात मिलन की
आसमां देखेगा आखों में हमदम की
फिर छाएगी मदहोशी रात में
नींद में, बेहोशी में, जज़्बात में

Tuesday, August 2, 2011


तेरे हर छुए का मुझे अब भी एहसास है
तू मुझसे दूर सही, लेकिन दिल के पास है
ये बात होगी आम, मेरे लिए ख़ास है
तुझमें ग़ुम हो जाऊं, जागी फिर से आस है

मैं गया नहीं, वक़्त ले गया मुझको
मेरा अक्स रहा वहीं, जहां मैंने छोड़ा तुझको
अब हमारे दरमियां फ़ासले कम नहीं ज़माने के
रास्ते बदल गए तेरे मेरे आने जाने के

तेरी याद में दिल तनहा अक़्सर रोता है
वो पूछता मुझसे, मेरे साथ ये क्यों होता है
क्यों तू ऐसे सपने संजोता है
जिनके टूटने पर तुझे दर्द होता है