ख़्वाबों, ख़्यालातों, बातों का हंगामा
दिन के उजाले में बीती रातों का हंगामा
दिन के उजाले में बीती रातों का हंगामा
मचलती आंखों के नाज़ुक एहसास के
हर ओठ में छिपे जज़बातों का हंगामा
हर ओठ में छिपे जज़बातों का हंगामा
चौक-चौबारे से ग़ुज़रते हर शक़्स की
हर दिन होती मुलाक़ातों का हंगामा
हर दिन होती मुलाक़ातों का हंगामा
शोर-ओ-गुल में गुज़री ज़िंदगी की
रातों में गुज़रते सन्नाटे का हंगामा
रातों में गुज़रते सन्नाटे का हंगामा
इस गफ़लत में भूल बैठा हुं 'अमन'
है हंगामें में ज़िंदगी या ज़िंदगी में है हंगामा
है हंगामें में ज़िंदगी या ज़िंदगी में है हंगामा
No comments:
Post a Comment